अक्सर हम कुछ ऐसा सुन लेते हैं या पढ़ लेते हैं , जो हमें खुद की रूह से जोड़ देता है। ऐसी ही एक रचना है जो मेरे दिल के बहुत ही करीब है Hamesha Der Kar Deta Hun Main (हमेशा देर कर देता हूँ मैं) , इसे लिखा है आदरणीय मुनीर निआज़ी (Muneer Niyazi) जी नें। उन्होंने Hindi/Urdu Shayari को अपने अल्फ़ाज़ों और जज्बातों से ऐसे सींच के लिखा है , की कोई इसे दिल से महसूस किये बिना नहीं रह सकता।
हमेशा देर कर देता हूं मैं
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Hamesha Der Kar Deta Hun Main - Muneer Niyazi |
ज़रूरी बात कहनी हो,
कोई वादा निभाना हो,
उसे आवाज़ देनी हो,
उसे वापस बुलाना हो,
हमेशा देर कर देता हूं मैं,
मदद करनी हो उसकी,
यार का ढांढस बंधाना हो,
बहुत देरी ना रास्तों पर,
किसी से मिलने जाना हो,
हमेशा देर कर देता हूं मैं,
बदलते मौसमों की सैर में,
दिल को लगाना हो,
किसी को याद रखना हो,
किसी को भूल जाना हो,
हमेशा देर कर देता हूं मैं,
किसी को मौत से पहले,
किसी ग़म से बचाना हो,
हक़ीक़त और थी कुछ,
उस को जा के ये बताना हो,
हमेशा देर कर देता हूं मैं,
कोई वादा निभाना हो,
उसे आवाज़ देनी हो,
उसे वापस बुलाना हो,
हमेशा देर कर देता हूं मैं,
मदद करनी हो उसकी,
यार का ढांढस बंधाना हो,
बहुत देरी ना रास्तों पर,
किसी से मिलने जाना हो,
हमेशा देर कर देता हूं मैं,
बदलते मौसमों की सैर में,
दिल को लगाना हो,
किसी को याद रखना हो,
किसी को भूल जाना हो,
हमेशा देर कर देता हूं मैं,
किसी को मौत से पहले,
किसी ग़म से बचाना हो,
हक़ीक़त और थी कुछ,
उस को जा के ये बताना हो,
हमेशा देर कर देता हूं मैं,